name='viewport'/> link rel=“canonical”href=“https://ahiredeepak.blogspot.com/” /> स्व-काव्यांकुर (SWA-KAVYANKUR): पहाटे पहाटे...

पहाटे पहाटे...

पहाटे पहाटे  

पहाटे पहाटे                    
अनेक स्वप्न पडतात,       
ताडकन झाेपेतून             
तीच जागी करतात...     

पहाटे पहाटे
पक्ष्याचा सुंदर आरव,
पावश्या देताे जाणीव
पेरते व्हाचा मनव.... 

पहाटे पहाटे                    
मन असते ताजे फ्रेश,       
त्यामुळे उलटावी             
अपेक्षित कामाची वेस..    

पहाटे पहाटे
निसर्ग हा बहरला, 
नित्यनेमाने हा निसर्ग
कामात नाही चुकला... 

©️ श्री. दीपक केदू अहिरे, नाशिक

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