name='viewport'/> link rel=“canonical”href=“https://ahiredeepak.blogspot.com/” /> स्व-काव्यांकुर (SWA-KAVYANKUR): मन गुंतते या आभासी जगात (mind engages virtual world)

मन गुंतते या आभासी जगात (mind engages virtual world)


मन गुंतते या आभासी जगात
mind engages virtual world


mind engages virtual world

मन गुंतते 
या आभासी जगात, 
मन समृद्ध, 
छंद असताे लिखाणात... 

आभासी जग, 
दृष्टीकाेनाने चांगले, 
करतेच सर्वांगाने, 
माणसाचे ते भले... 

आस्वाद घ्यावा तुम्ही, 
आभासी जगाचा, 
बदलेल तुलनेने, 
तुमची काया नी वाचा... 

आभासी जगात, 
गुंतू नये जास्त, 
तेवढ्यापुरती उकल, 
करावी वास्तपुस्त... 

© दीपक अहिरे, नाशिक

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