name='viewport'/> link rel=“canonical”href=“https://ahiredeepak.blogspot.com/” /> स्व-काव्यांकुर (SWA-KAVYANKUR): पंख...

पंख...

पंख स्वप्नाचे....  

पंख स्वप्नाचे                      
लावून घेत चला,                
पंख अपेक्षेचे                     
शाश्वत ती माला...             

पंख आशेचे
ध्येयाप्रत पाेहचावे, 
प्रेमाने व आनंदाने
जगावे नी जगवावे... 

पंख कर्तव्याचे                 
फडकवा पताका,              
चांगल्या कर्मासाठी        
अवश्य ते वाका...              

पंख आकांक्षेचे
व्हावे गगन ठेंगणे, 
भवसागर पार व्हावा
हेच माझे मागणे... 

© दीपक अहिरे, नाशिक

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