name='viewport'/> link rel=“canonical”href=“https://ahiredeepak.blogspot.com/” /> स्व-काव्यांकुर (SWA-KAVYANKUR): शब्दांचे जाळे

शब्दांचे जाळे

शब्दांचे जाळे...

शब्दांचे जाळे                 
मी दररोज विणताे,        
शब्दांसाठी माझा           
नित्य श्वास असताे          

शब्दांचे जाळे
मन माझे माेहरते, 
शब्दांसाठी ते 
झुरतच बसते

शब्दांचे जाळे                 
शब्दजाळात फेकताे,       
एक एक शब्द                
मी त्यात अटकवताे        

शब्दांचे जाळे
मला माेहवते, 
शब्द मला आता 
शब्दा शब्दाने खुणावते

© दीपक अहिरे, नाशिक

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